Monday, 13 November 2017

पूर्वाभास

सर्द झोंको की छुअन
महसूस करवाती है
तुम हो यहीं-कहीं
मेरे ही आसपास

पर तुम हो कहाँ
दिखते ही नहीं
पसरी है दूरियां
मन भी है उदास

पर है ये इत्मीनान
खत्म होंगे इम्तिहान
तुम भी समझोगे
तुम हो कितने खास

मेरे बिन तुममें भी
सब है सूना-सूना
फिजाओं की महक
दिलाती है ये एहसास

मौसम फिर बदलेगा
बदलेगा हवा का रुख
लौटोगे तुम मुझमें
मुझको है ये विश्वास

नहीं है निराशा कोई
नहीं है कोई डर
समय की अलगनी पर
अटकी हुई है सांस

इंतज़ार के कठिन पल
लम्हे लम्हे का हिसाब
खुद को तुममें खोकर
तुम्हे पाने की आस

सुनो हवाओं का राग
बदल रही है धुन
हो रहा मुझे तुम्हारे
आने का पूर्वाभास,....

प्रीति सुराना
13/11/2017

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