अंधेरों को दूर करते
अनवरत जलते कंदील को देखकर
सहसा मन उद्वेलित से होता है
कैसे सहता होगा ताप
कांच
अंधेरे और रोशनी के बीच
दीवार बनकर
फिर
याद आते हो अनायास
"तुम"
मेरे और दर्द के बीच
दीवार बने
जो पहुंचने ही नही देते
तपिश
जो तुम खुद सहते हो
मुझे शीतलता पहुंचाने के लिए,..
सुनो!
कभी मेरी भी मान लिया करो
मैं सह लूँगी आंच
दुखों की
जो तुम साथ हो,...
फिर
क्यूं
उठाते हो अकेले हर जोखिम
मुझे साथ ले लो
जलेंगे साथ तेल और बाती बनकर
करेंगे रोशन जहां सारा
भले ही जलना पड़े
अपने लिए न सही
अपनों के सुख के लिए
पर दूर नहीं साथ तो होंगे,..
अनवरत जलते कंदील को देखकर
सहसा मन उद्वेलित से होता है
कैसे सहता होगा ताप
कांच
अंधेरे और रोशनी के बीच
दीवार बनकर
फिर
याद आते हो अनायास
"तुम"
मेरे और दर्द के बीच
दीवार बने
जो पहुंचने ही नही देते
तपिश
जो तुम खुद सहते हो
मुझे शीतलता पहुंचाने के लिए,..
सुनो!
कभी मेरी भी मान लिया करो
मैं सह लूँगी आंच
दुखों की
जो तुम साथ हो,...
फिर
क्यूं
उठाते हो अकेले हर जोखिम
मुझे साथ ले लो
जलेंगे साथ तेल और बाती बनकर
करेंगे रोशन जहां सारा
भले ही जलना पड़े
अपने लिए न सही
अपनों के सुख के लिए
पर दूर नहीं साथ तो होंगे,..
प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर
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