Sunday, 22 October 2017

समय की पाबंदियाँ

रह जाती है
अकसर
मेरी बातें आधी अधूरी
तुममें डूबकर करते हुए बातें
भूल जाती हूँ
निर्धारित समय सीमा
क्या करूँ
मेरी चाहतें
समय की पाबंदियाँ
नही समझती,...

प्रीति सुराना

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