Tuesday 31 October 2017

*समय से संघर्ष जारी है*


       आज की लघुकथा
विषय: संघर्ष
शीर्षक: *समय से संघर्ष जारी है*
       विभूति गुमसुम सी खयालों में खोई हुई है। शायद खुद को किसी नए निर्णय के लिए तैयार कर रही है।
पिछले 40 बसंत उसने समर्पण की प्रतिमूर्ति बनकर बिता दिए। अपनों की खुशी और सलामती के लिए समर्पित होते होते खुद में इतना रीतापन भर लिया कि उस रीते मन में गुबार का लावा सा भर गया जो कभी कभी पलकों की कोर से ढुलकने को होता है पर रिसाव अपनों के चेहरे की शीतलता देखते ही थम जाता है।
       कुछ पल, घंटे, महीने, सालों बाद अब अचानक सहकर्मी उत्कर्ष का सामीप्य दोस्ती से कुछ अधिक नही बल्कि सबसे महत्वपूर्ण लगने लगा।
       जिस पल बातों ही बातों में उत्कर्ष ने उसे उदास देखकर हाथों में हाथ लेकर कहा "मैं तुम्हे उदास नहीं देखा सकता, तुम मेरी जिंदगी हो तुम्हारी आँखों की नमी मुझसे बर्दाश्त नही होती। जिम्मेदारियों का अर्थ ये नही है कि खुद को खत्म कर दो। तुम्हारे सपनें, तुम्हारी महत्वाकांक्षाएं एवं तुम्हारे अस्तिव को ढूढकर लाओ, वो अब सिर्फ तुम्हारे नहीं हैं,मेरा भी पूरा अधिकार है उनपर "।
      ये सुनते ही भीतर जमा लावा पिघलकर फूट पड़ा उत्कर्ष के कंधों पर। रिसते आंसू कब बहकर सारा गुबार निकाल गए पता ही न चला। घर जाने का समय हो चुका था। जिम्मेदारियां बुला रही थी।
      बेमन से उत्कर्ष से कल तक का समय मांगकर घर आ गई। 
       गुमसुम बैठी विभूति के होठों पर स्मित साफ दर्शा रहा है कि अब वो फिर से एक नए संघर्ष के लिए तैयार है ।
       उत्कर्ष को अगले दिन बिना कुछ कहे जवाब मिल गया कि विभूति ने अपनी मुस्कान को खिलखिलाहट में बदलने और मन के रीते कैनवास में अपने सपनों के रंग भरने का निर्णय ले लिए है। ये उसके लिए दोस्ती का सबसे अनमोल उपहार था। और अब,...
समय से संघर्ष जारी है।

प्रीति सुराना

3 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (01-11-2017) को
    गुज़रे थे मेरे दिन भी कुछ माँ की इबादत में ...चर्चामंच 2775
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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