Wednesday, 11 October 2017

हमसफर

सुनो!
मैं खुश भी हूं
तुम्हारा साथ पाकर
मुझे दुख भी है
तुम पा सकते थे मुझसे बेहतर
मुझमें भर दिया आत्मविश्वास
मैं जी सकती हूं खुलकर
पर सच कहूं तो डर रही हूं
जी नहीं पाऊंगी
कभी तुम्हे खोकर
दुनिया के अजब से दस्तूर है
जो चलता है
उसे ही लगती है ठोकर
पर
मुझे इत्मिनान है
तुमने थामा है हाथ मेरा
नहीं लगेगी मुझे चोट गिरकर
क्योंकि गिरने से पहले थाम लेने का
तुममें हुनर है मेरे हमसफर,...

प्रीति सुराना

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