Thursday, 14 September 2017

लक्ष्य पूरा कर

हाँ!
मुझे ज्यादा
सुख-सुविधाओं की आदत नही है
मैंने अपने घर की
चाहरदीवारी में
रजनीगंधा, रातरानी ,
गुलमुहर या पलाश नही लगवाए,...

अकसर गुजरती हूँ
जब ऐसे मकानों के बाहर से
खुशबू के झोंके मुझे भी ललचाते हैं
पर उन्हीं घरों में लोग चैन से नही सोते
करवटें बदलते रात बिताते हैं,..
हर मौसम में कुछ खो जाने के
कुछ लुट जाने के डर से,..

मैंने बो रखे हैं अपने ही आसपास बबूल
जिसके कांटे बिंधते है
पल प्रतिपल मेरे मन को
और याद दिलाते हैं
खुशबू से ललचाकर कोई लुटेरा
लूट ले जाए खुशी
या फूलों की सेज पर गहरा जाए आलस्य,...

उससे बेहतर
उठ,...चल,...भूल जा दर्द सारे
निकाल फेंक फिलहाल चुभे सारे कांटे
बहुत सारी जिम्मेदारियां है आज
भागने की आदत नहीं इसी पर कर नाज
अभी तो लक्ष्य पूरा कर फिर कभी सोचेंगे
इस चुभन की दवा और इस दर्द का इलाज,...

प्रीति सुराना

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