Tuesday, 12 September 2017

समर्पण

                     समर्पण
         दृष्टि सभी के पास है। कोई सिर्फ आंखों से, कोई मन की आंखों से , कोई मष्तिष्क की आंखों से देखता है। आंखों का देखना दूरदृष्टि या निकटदृष्टि से प्रभावित होता है, मन से देखना संवेदनाओं से प्रभावित होता है और मष्तिष्क से देखना व्यवहार से प्रभावित होता है।
         वस्तु, परिस्थिति और विषय सिर्फ समय और आवश्यकता ही नहीं अपितु विवेक से भी अलग-अलग पात्र के लिए अलग-अलग रूप भाव और महत्व का निर्माण करती है। बस भेद इतना ही होता है किसी बात को किस तरह से देखा जा रहा है।
        इस संकलन में प्रस्तुत है कुछ सामाजिक, पारिवारिक, राजनैतिक और व्यक्तिगत परिस्थितियों में मेरा 'दृष्टिकोण'
         हांलाकि समय की लाठियाँ अनुभवों के कई नए सबक देकर सोच में, भाषा में, शैली में, प्रस्तुतिकरण में कई बदलाव लाती है, पर संवाद शैली में लिखे गए सारे आलेख एक संकलन के रूप में बिना किसी परिवर्तन के जैसा का तैसा स्मृतियों में संजोने भर के लिए नहीं बल्कि अपनी सोच अपनों के सामने बिना बनावट या नवीन साज सज्जा के समर्पित कर रही हूं। आशा है आप सभी का आशीर्वाद और मंथन से निकला नवनीत समीक्षा के रूप में प्राप्त होगा।

प्रीति समकित सुराना

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