Tuesday, 5 September 2017

सांसों का खपना

अब न नींद है न जागती आंखों में कोई सपना
साथ न कोई गैर है और न कोई अपना
कब थमते गए सिलसिले पता ही न चला
जिंदगी में बाकी है सिर्फ सांसों का खपना।

प्रीति सुराना

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