एकाकी
खुद को एकाकी पाया है
जीवन के हर मोड़ पर
अब विश्वास लगा डोलने
रिश्तों के गठजोड़ पर
दुनिया में अब भी नेकी है
मैंने दुनिया देखी है
लेकिन अनुभव की परिपाटी
पहुंची न इस निचोड़ पर
अब विश्वास लगा डोलने
रिश्तों के गठजोड़ पर
खुद को एकाकी पाया है
जीवन के हर मोड़ पर
मन में *आशाओं* को मैंने
दीपक बनकर पाला है
जलकर जग को दिया उजाला
बस अपने तल को छोड़कर
अब विश्वास लगा डोलने
रिश्तों के गठजोड़ पर
खुद को एकाकी पाया है
जीवन के हर मोड़ पर
देह न तजती सांसे तब तक
कर्तव्यनिष्ठ ही रहना है
और पलायन भी वर्जित है
सहने की सीमा तोड़ कर
अब विश्वास लगा डोलने
रिश्तों के गठजोड़ पर
खुद को एकाकी पाया है
जीवन के हर मोड़ पर,...
प्रीति सुराना
आपकी इस पस्तुति का लिंक 07-09-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2720 में दीिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
सुन्दर।
ReplyDeleteभावनाओं पर कर्तव्य की ही जीत होती है ! एकाकी रहना और अकेले रह जाना दोनों में से चुनना होता है । अंग्रेजी में कहीं पढ़ा था - Being alone is better than being lonely.
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है आपने