Monday, 4 September 2017

धर्म का मर्म

एक सवाल
जो उमड़ता है
अकसर मेरे मन में,..
उत्तम क्षमा
या
क्षमायाचना
मुआफ़ी
सॉरी
रब मैनूं माफ़ करा
इन बातों के मायने क्या???

चौरासी लाख जीव योनि से
हर धर्म का व्यक्ति
अपनी अपनी भाषा में
अपने अपने धर्मविशेष पर्वों में
मांगता है क्षमा
अपने जाने अनजाने किये गए
अपराधों की,
और साथ ही
करता है
क्षमादान भी,..

पर क्या ये क्षमापर्व महज दिखावा नहीं
जब अंतःकरण से
सिर्फ उसी से क्षमा नहीं मांगी
जिसके अपराधी हों
जिसके लिए मन में द्वेष हो
या
सिर्फ उसे ही क्षमादान नही दिया
जो अधिकारी हो,
जिसके मन में प्रायश्चित के भाव हों
जिसने अंतःकरण से क्षमा मांगी हो, नहीं न???

यानि
बड़े से बड़ा पर्व
पर्युषण/दसलक्षण
मोहर्रम
क्रिसमस
गुरु पूर्णिमा
सब व्यर्थ
जब धर्म सिर्फ दिखावा हो,..

जब हमनें समझा ही नहीं
*'धर्म का मर्म'*

*अंतःकरण से सभी से क्षमायाचना और उत्तम क्षमा*

प्रीति सुरना

2 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (05-09-2017) को शिक्षक दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ; चर्चामंच 2718 पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. ऐसा कर्म दिखावा ही है, सिर्फ लकीर की फकीरी

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