Saturday 2 September 2017

तोड़ रही हूं नाते सबसे

तोड़ रही हूं नाते सबसे
इससे उससे तुमसे खुद से...

तितली सा उड़ता फिरता मन
पीड़ा से बिधता है कैसे
घायल पर देखे हैं तब से
तोड़ रही हूं नाते सबसे

इससे उससे तुमसे खुद से...
पतंग बंधी थी मांझे से
आकाश नया छूकर आई
हाथ कटा मांझे से जब से
तोड़ रही हूं नाते सबसे

इससे उससे तुमसे खुद से...
अपना अपना कहते कहते
चलन हुआ बस कहने का
नाते निभते अब बातों से
तोड़ रही हूं नाते सबसे

इससे उससे तुमसे खुद से...
बंधन जोड़ चुका था यह मन 
भाव रहा केवल अपनापन
घात मिले अपनों से तब से
तोड़ रही हूं नाते सबसे

इससे उससे, तुमसे खुद से,..
जीवन में सुख दुख तो सम हैं
पर जीवों में धीरज कम है
हर सुख जुड़ा किसी दुख से
तोड़ रही हूं नाते खुद से

इससे उससे तुमसे सबसे
बंधन से अब जी उकताया
राग द्वेष मोह और माया
कब निकलेंगे इस तन मन से
तोड़ रही हूं नाते सबसे

इससे उससे तुमसे खुद से...
तोड़ रही हूं नाते सबसे

प्रीति सुराना

2 comments:

  1. बहुत सुन्दर

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  2. मर्मस्पर्शी ! पर मोह छूट कहाँ पाता है.....

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