कह गया रावण
इस बार भी
जलते जलते
हे! नीलकंठ
मेरे शिव ने पीया गरल
कहलाए नीलकंठ
तुम हो प्रतीक
याद दिलाना
इस दुनिया को
आज जल रहा हूँ
'मैं'
और अंततः जल ही जाएगा
सबके भीतर बैठा
'मैं'
चिता के साथ,..
और
जितना कम अहम
जितना कम वहम
उतनी ही कम होगी पीड़ा
जब होगा 'मैं' का दहन,... प्रीति सुराना
सार्थक कविता
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