हां!
लकीर की फकीर हूँ मैं
इसलिए मैंने बनी बनाई लकीरों को नहीं तोड़ा
बस उनमें जीवन के अनगिन पलछिन
और अपरिमित कोनों में पसरे
छोटे-छोटे सिरों को जोड़ती चली गई,
अब
मेरी किस्मत की लकीरों को
मिटाने की कोशिश न करे ये दुनिया
तो बेहतर होगा,
मिटेगी अगर ये
तो बिखर जाऊँगी मैं,..
पर
मुश्किल लक्ष्य है
अब मुझे तोड़ना
मैंने सिरों को मजबूती से जोड़ा है
प्रेम और विश्वास के मिश्रण से
"मजबूत जोड़ है,... टूटेगा नही"
सुनो!
तुम भी कोशिश करो
प्रेम और विश्वास को
तोड़ने की बजाय जोड़ने में
शायद एक बड़ी लकीर
मेरी लकीर को छोटा कर दे,..
यकीनन मुझे खुशी होगी
शायद
कोई सिरा मुझसे भी जुड़ेगा,..
लेकिन
कोई ज़िद या कोई जद्दोजहद नहीं
सिर्फ उम्मीद,...
प्रीति सुराना
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