एक बार धरती और अंबर के बीच संवाद हुआ, धरती ने कहा कितनी सदियां बीत गई न हमें साथ चलते चलते।
दोनों चलते रहे समानांतर, कभी आसमां झुका, कभी बरसा, कभी शीतलता को तरसा। कभी धरती बनी पर्वत, घाटी ,कभी ऊंचे पेड़ों के जरिये मिलन को बढ़ी। पर सदियों यूँही साथ साथ चलते समर्पण का अटूट संबंध निभाते रहे।
एक दिन पर्वत की चोटी पर झुके अंबर से धरा ने कहा सुनो इंसानों को बतियाते सुना है जिस ओर से भी देखो धरती अंबर मिलते हुए नज़र आते हैं। पर हम दोनों तो एक ही हैं शाश्वत सत्य तो यही है, हमारे बीच ही समाहित है हमारे अनंत प्रेम से निर्मित सम्पूर्ण सृष्टि । जब तक हमारे केंद्र में प्रेम है तभी तक सृष्टि है।
अंबर बोला "इंसान मिलन को प्रेम समझ बैठा है मानता ही नहीं प्रेम मिलन का पर्याय नहीं है प्रेम तो अनंत है। मिलन को प्रेम समझने वाले ये नही समझ पाएंगे कि जहाँ मिलन वहां प्रेम की सीमा खत्म। तुम्हारा और मेरा प्रेम भी जब खत्म होगा वो पल प्रलय का होगा।"
"क्षितिज केवल भ्रम है प्रेम में मिलन की अनिवार्यता का।"
अब भी दोनों चल रहे हैं सतत सप्रेम और समर्पित आदि से अनंत तक प्रेम में समाहित साथ साथ।
प्रीति सुराना
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 17-08-17 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2699 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
मार्मिक विचार सोचने को विवश करती ,आभार ,"एकलव्य"
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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