पत्थर को लगता है
बहुत मजबूत है
किसी को भी
चोट पहुंचा सकता है
इसलिए
उससे डरकर लोग कुछ पत्थरों को
भगवान का रूप देकर पूजने लगते है
पर
चोट यदि कर्मफल ही हो
तो कैसे भी मिलेगी ही
फिर शुरू होगा
अपने ही बनाए भगवान को
पत्थर कहकार कोसना,...
जो पत्थर
ज्यादा कठोर होते हैं
और छेनी हथौड़ी की मार
नही सह पाते
वो खंडित होकर पड़े होते हैं
ठोकरों में
जब तक ठोकरों से ज्यादा
पत्थर कठोर हो
तब तक
बार-बार चोट देते हैं
पर एक वक्त के बाद
वह भी कमजोर होकर
टूटकर
रेत-रेत होकर बिखर जाते है...
फिर
जाने कौन सी नदी बहा ले जाए
या कौन सी हवा उड़ा ले जाए
अंततः
खत्म कठोर पत्थर का वजूद,..
काश
होता पत्थर भी मोम का,.
टूटकर, पिघलकर, जलकर
रहता किसी भी आकृति में मोम ही
मुलायम और मौलिक,..
काश
हम सीख पाते
पत्थर नही मोम बनना,..
ठोस होकर भी
बिखरने से बेहतर
पिघलकर नए रूप में ढलकर
अपने वजूद को बचा पाते,...
सुनो
पत्थर दिलों
अभी भी वक़्त है
बन जाओ मोम,...
प्रीति सुराना
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