निकालो वक्त कभी कि
सुन सको मेरी परेशानी
क्यों रहती है सिलवटों भरी
अकसर मेरी पेशानी,
छोड़कर मिलो मुझसे
अपनी बेरुखी कुछ पल,
ये यादें बन जाए शायद
बाद मेरे मेरी निशानी।
प्रीति सुराना
copyrights protected
0 comments:
Post a Comment