Friday, 7 April 2017

पिटारा

मैं यूं ही इत उत डोलूं
या खुद ही खुद से बोलूं
महकी महकी रहूं मैं जब
सुधियों का *पिटारा* खोलूं

प्रीति सुराना

1 comment: