Sunday 5 March 2017

लाचारी

शोर बहुत है मन के घर में
पीर उठी है ऊंचे स्वर में

मन मानस उलझे आपस में
जाने जीते कौन समर में

टूट गया है मन का आंगन
गम ही गम है मेरे दर में

सड़कों पर दिखती लाचारी
कौन नहीं मजबूर शहर में

साथ नहीं कोई चल पाया
छोड़ गये सब प्रीत डगर में

प्रीति सुराना








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