हां!
सच कहा था तुमने
नहीं बदल पाई
नए जमाने के साथ,..
सफलता और सुख
साझा न करने के ज़माने में
सिर्फ
दुःख में,
दर्द में,
तन्हाई में,
अँधेरे में,
अकसर लोगों को देखा
तलाश करते किसी कंधे की,..
टटोलते कोई हाथ
जो थाम ले मुश्किल समय में,..
पर मैं
खुश भी अकेले नहीं हो पाती,
पहले ही डर जाती हूं
उजालों के बाद के अंधेरों से,
ख़ुशी के बाद की तकलीफ से,
भीड़ में अपनी तन्हाई से,
इसलिए अच्छे दिनों में भी
मैं चलती हूँ
हाथ पकड़कर अपनों का
समय
और समय के साथ परिस्थितियां
कब बदल जाए कौन जाने,..
इसलिए
तुमसे नहीं पूछूँगी
*रह लोगे मेरे बिन*
क्योंकि तुमने हां कह भी दिया
तो नहीं रह पाऊँगी मैं
*तुम बिन*
सुनो!
रहना हमेशा तुम साथ
मैं सचमुच खुशियों से डरती हूं,..
संभालना मुझे,..
डरपोक हूँ मैं,...
प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर
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