हां!!
ले रही हूँ विदा
अपनों से सपनों से
सच से झूठ से
आज से अतीत से
रस्मों से रीत से
नफरत से प्यार से
झगडे से प्रहार से
शक से यकीन से
रात से दिन से
अपेक्षा से उपेक्षा से
सत्य से आभास से
रिश्तों से दोस्ती से
जरूरतों से ख्वाहिशों से
खुद से खुदा से
जुड़े से जुदा से
दर्द से दुआ से
जख़्म से दवा से
हार से जीत से
प्रीत से मीत से
पर हां
ये वादा है
देह का त्याग
नहीं करुँगी मैं
कभी खुद से
क्योंकि
जब आत्मा ही है अशेष
तो देह को लेकर कैसा क्लेश
नहीं कोई बैर
न किसी से द्वेष
इंतज़ार परिणाम का बस अब निर्मिमेष
कुछ भी नहीं विशेष
देखना है बस अंतिम सांस तक
क्या बचे निःशेष
अलविदा कहना था
बस यही उद्देश्य
करबद्ध क्षमाप्रार्थी
जीवन है जब तक शेष,... प्रीति सुराना
सुन्दर।
ReplyDeleteहमारे हार मान लेने से सफ़र खत्म नहीं होता हमें हमेशा चलते रहना चाहिए।
ReplyDeleteजीवन के अनुभव कुछ कड़वे कुछ मिठें होते हैं।
http://savanxxx.blogspot.in
बड़ा मुश्किल है इतना वीतराग बन कर दुनिया में रहना .
ReplyDelete