गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं
देखो देश सजा है फिर से, गणतंत्र दिवस फिर आया है,
लाल किले की प्राचीरों से, राष्ट्र ध्वज फहराया है ।
हरी भरी धरती पर अपनी धवल ओस की बूंदें सजी,
ऋतु बसंत ने वसुंधरा को रँग केसरिया पहनाया है।
भारत का संविधान बने सड़सठ साल हुए पूरे,
बिन अनुशासन नही है जीवन संविधान ने समझाया है।
देखो देश सजा है फिर से, गणतंत्र दिवस फिर आया है,
लाल किले की प्राचीरों से राष्ट्र ध्वज फहराया है ।
कैसे हम कर्तव्य निभाएं क्या क्या हैं अधिकार हमारे,
देश वासियों के हितअहित का समुचित विस्तार बताया है।
नियम तोड़ना सरल नही है हर ग़लती की सजा मिले,
देश के हित कैसा हो चिंतन चित्र समग्र दिखलाया है।
देखो देश सजा है फिर से, गणतंत्र दिवस फिर आया है,
लाल किले की प्राचीरों से हमने ध्वज फहराया है ।
भ्रष्ट हुआ अब लोकतंत्र और बिगड़ा सारा ही आचार,
संविधान ने भ्रष्टों के हित पग-पग जाल बिछाया है ।
नैतिक अनैतिक सब लिख डाला संविधान निर्माता ने,
सोचो तुम भारत के वासी कितना फर्ज़ निभाया है ।
देखो देश सजा है फिर से, गणतंत्र दिवस फिर आया है।
लाल किले की प्राचीरों से राष्ट्र ध्वज फहराया है ।।
तिलभर आंच न आने पाए भारत की अस्मित को *प्रीत,*
हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई किसने दायित्व उठाया है।
स्वतंत्र रहे स्वछंद नहीं हों लहू ऋणी हों भारत मां का,
अपने गणतंत्र का मान करें हम राष्ट्र पर्व यह आया है।
देखो देश सजा है फिर से गणतंत्र दिवस फिर आया है।
लाल किले की प्राचीरों से राष्ट्र ध्वज फहराया है ।।
प्रीति सुराना
बढ़िया प्रस्तुति
ReplyDelete