Thursday 19 January 2017

मेरे सिराहने,..

आजकल
सीने में दर्द बार बार उठने लगा है
डॉक्टर के साथ-साथ अपनों ने भी दी है नसीहतें
कुछ दूर पैदल चलने की,..

फूलती सांसें
बेतरतीब धड़कने
और लड़खड़ाते कदम
इजाजत नहीं देते
सर्टिफाइड बड़े दिल की जो हूँ :)

हां!
मैं चल सकती हूँ
तुम्हारा हाथ थाम कर
जहां तक तुम ले चलो,..
पर

ठंड में
बढ़ जाता हैं जोड़ों का दर्द
डरती हूँ
कहीं हमारे गठजोड़ में कोई दर्द न शुरू हो जाए,..

गर्मी में
व्यावसायिक व्यस्तताएं नहीं देती समय
और फिर
आर्थिक नुकसान भी तो
इलाज को प्रभावित करता है,..

बारिश में
भीगना चाहती हूं कुछ पल
थामकर तुम्हारे हाथ
पर चलना या टहलना फिसलन में
मुसीबतों को दावत जैसा,..

नियति ने ही
साथ चलने या टहलने का सुख या मौका छीन लिया,..
लेकिन जानते हो तुम्हारे साथ के दो पल
डॉ की हफ्ते भर की दवाइयों से ज्यादा असर करते है मुझपर,..

सुनो!!
कुछ देर बैठो न मेरे पास
मेरे सिराहने मेरा हाथ थामकर,... प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment