Wednesday 21 December 2016

नीला आसमान


          तुम्हारी तबियत इतनी ख़राब रहती है,घर पर रहा करो, बच्चे बड़े हो रहे उन्हें संभालो। ये शील्ड और सम्मान पत्रों का क्या करना है, तुम्हारे जैसी समझदार बहु से ये उम्मीद नहीं थी। ये कहकर तीखी नज़रों से देखती हुई नीला की मौसी सास वहां से चली गई।
          अपने गांव से किसी भी जगह जाने के लिए नीला को अपनी मौसी सास के शहर से ही ट्रेन मिलती थी। कल उसकी पेंटिंग को राष्ट्रीय सम्मान मिलने वाला है। कोहरे की वजह से सारी ट्रेन्स लेट चल रही थी, 4 घंटे स्टेशन पर बैठने की बजाय मौसी के घर आ गई, मौसा जी के पैर छुए लेकिन उन्होंने आशीर्वाद नहीं दिया। बाद में पूछने पर मौसी ने भी दो टूक जवाब दिया। मुश्किल से बचा समय काटकर ट्रेन के समय से पहले ही नीला वहां से निकल गई।
            रास्ते भर सोचती रही 20 वर्ष हुए शादी को, अनेकों बीमारी, 5 ऑपरेशन, 3 अटैक और दवाओं के बुरे से बुरे साइड इफेक्ट्स के बावजूद  अपने परिवार को सँभालने के लिए 4/5  बैग्स भरकर 3-4 गाड़ियां बदलकर गृह व्यापार के सामान लाना, घर के हर सदस्य के बाहर के  हर काम उसी के साथ निबटाना,समाज परिवार और धर्म की हर गतिविधि का हिस्सा बनना और 3 बच्चों की जिम्मेदारी के बाद परिवार से अलग किये जाने पर आधी रात तक मकान और दुकान की हर जिम्मेदारी निभाने के साथ पति के बुरे वक़्त पर बराबरी से खड़े होना। और पति और बच्चों की सहमति से ही फिर से पेंटिंग शुरू करना और इस मुकाम पर पंहुचना क्या इतना आसान था जितनी आसानी से कहे गए मौसी के शब्द थे।
परिवार के काम करने वाली बहु किसी दिन नाम काम ले अपनी कला से तो वो अच्छी बहु नहीं होती????
        सवालों की कड़ी ऑटो रिक्शा के झटके से टूटी, स्टेशन आ चुका था। ऑटो रिक्शा के साथ मन में उठ रहे सारे सवालों को छोड़कर ट्रेन में जाकर बैठी। सारे विचारों को मन से बाहर फेंक कर खिड़की की ओर देखने लगी। आसमान का एक टुकड़ा उसकी खिड़की से दिख रहा था। बस वही उसकी मंजिल थी।
क्या नीला को उसके हिस्से का थोड़ा सा *नीला आसमान* पाने का अधिकार है?

प्रीति सुराना

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