Saturday 19 November 2016

*जज्बातों के बोनसाई*

*जज्बातों के बोनसाई*
        अनुष्का को फूलों से बहुत प्यार था। अरुण और अनुष्का के विचारों के भेद ने दोनों के बीच दूरियों का एक गलियारा सा बन लिया था । दोनों एक ही छत के नीचे अपनी अपनी जिंदगी जी रहे थे। कभी डिप्रेशन, कभी कलह, कभी मूक संवाद घर के माहौल में पसारता चला गया। बच्चे होस्टल में अरुण अपने काम पर दिन काटे नहीं कटता था।
     कालोनी में सामने ही एक पार्क था। अनुष्का ने अपनी पसंद के अनुरूप दोपहर को सारे काम निबटा कर शाम पार्क में जाना शुरू कर दिया।कभी फूलों के साथ कभी बच्चों के साथ कभी अन्य आगंतुकों के साथ बातचीत में कब वक़्त निकल जाता पता ही नहीं चलता था। अरुण के लौटते ही वह उसी के साथ घर का दरवाज़ा खोलती और पानी का गिलास उसे देकर गुनगुनाती हुई चाय बनाती, दोनों साथ चाय पीते और एक दूसरे की दिनचर्या पर बात करते।
        दोनों के विचार पहले ही नहीं मिलते थे। विचारों के अनुरूप दोनों ही विपरीत माहोल में जी रहे थे। अरुण कभी काम और ऑफिस के लोगों से अलग कही शामिल हुआ ही नहीं उसे हमेशा से दोस्ती और सक्रियता या परिवर्तन से आपत्ति रही। उसने खुद को एक दायरे में सीमित करके उसी में रहने का आदी बना लिया था। दूसरी तरफ अनुष्का खुले विचारों की, समय से तालमेल बनाने में समर्थ, मोहक मुस्कान से मित्रता और अपनेपन का भाव संप्रेषित करती।
      शादी के शुरुआती साल नए घर नया माहोल और बच्चों की परवरिश में निकल गया पर धीरे धीरे घुटन बढ़ती महसूस हुआ उसे। अभी हाल ही में हुए तबादले के बाद इस नई जगह में कुछ ही महीने तो बिताए हैं अभी। धीरे धीरे अनुष्का कालोनी के लोगों से घुल मिल गई और खुश रहने लगी।
    इन्ही दिनों कालोनी की समिति ने बोनसाई  बनाने की कला सीखने की एक हफ्ते की क्लासेस लगाई उसी पार्क में। अनुष्का बहुत ख़ुशी ख़ुशी तैयारियों में जुट गई। पूरी तल्लीनता से बोनसाई  बनाने सीखे उसने।इन दिनों अरुण की बातों में तंज और व्यवहार में तल्खियां बढ़ने लगी। अनुष्का अरुण के व्यवहार को भी नज़रअंदाज़ नहीं कर पाई। आज क्लास का आखरी दिन था। और किसी छोटी सी बात पर अरुण ने विस्फोटक होकर पार्क में जाने से मना कर दिया। रोती सुबकती अनुष्का ने खुद को बीमार बता कर अंतिम दिन की क्लास के बारे में सहेलियों से पूछकर नोट्स तैयार किये।

      काफी दिन तक घर के बहार बैठी अरुण के आने तक राह देखती और बेचैन सी पार्क को ताकती रहती। बीमार होने का बहाना अब सच में बदलने लगा था। एक दिन उसकी सबसे अच्छी सखी जिससे वो सब कुछ शेयर करती आई थी बचपन से उसका फोन आया। उसने उसे सबकुछ बताया। और उसकी प्रेरणा से कुछ ही दिनों में घर में बेकार पड़े सामान जो सीखने के समय ख़रीदे थे उनसे खूब सारे रंग  बिरंगे बोनसाई बना डाले, फिर से उसके चेहरे पर हंसी और उसकी गुनगुनाहट लौट आई। अब अरुण भी थोड़ा थोड़ा समझने लगा की अनुष्का की बीमारी और निराशा की वजह वो खुद हैं ।
        अनुष्का के जन्मदिन पर खुद ही बाजार से बोनसाई के सामान और छोटे छोटे कलात्मक गमले उठा लाया और कॉलोनी के सभी मित्रों के साथ सरप्राइस पार्टी रखी। खुशियां शायद लौटने को आतुर हैं।

बोनसाईब्की कला सीखकर घर को तो सजाया अब अनुष्का ने अरुण और उसके बीच बन गए दूरियों के गलियारे में जज़्बातों का बीजारोपण कर दिया है इस उम्मीद से कि ये क्या ये बीज बन जाएंगे जज़्बातों के सुन्दर बोनसाई  ,..।

     और हां ! कई बार उसके घर के सामने से गुजरते हुए मैंने अरुण को भी देखा है उन फूलों को सहलाते हुए और बोनसाई  को सींचते हुए। यकीनन अरुण अनुष्का के लगाए जज्बातों के बोनसाई को पनपने और सजाने में मदद करेगा। यकीनन फिर  महकेगा *जज्बातों के बोनसाई* से दोनों का घरोंदा।

प्रीति सुराना

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