कुछ रिश्तों को इस जीवन में
तन मन धन से बनते देखा,
प्रेम प्रीत हैं व्यर्थ के सौदे
खुद को और बिखरते देखा,
जब भी तौला आत्मतुला पर
कुछ आभासी रिश्तों को,
स्वार्थ नहीं था कुछ भी उनमें
बस अंतस से जुड़ते देखा।
प्रीति सुराना
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कुछ रिश्तों को इस जीवन में
तन मन धन से बनते देखा,
प्रेम प्रीत हैं व्यर्थ के सौदे
खुद को और बिखरते देखा,
जब भी तौला आत्मतुला पर
कुछ आभासी रिश्तों को,
स्वार्थ नहीं था कुछ भी उनमें
बस अंतस से जुड़ते देखा।
प्रीति सुराना
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