"निरुत्तर"
          कार से उतर कर मुकेश ने कटोरा पकड़े 6-7 साल की बच्ची से मुखातिब होकर कहा बेटा तुम भीख क्यों मांग रही हो किसी सरकारी स्कूल ने पढ़ने जाओ खाना भी मिलेगा और शिक्षा भी,... ।
              इतना कहा ही था कि उसकी मां जो आसपास ही रही होगी लपककर पास आई और अपनी बेटी की बांह कसकर पकड़ ली मानो मुकेश उसे छीन कर ले जाएगा। बहुत ऊँची आवाज़ में बोलना शुरू किया उसने। बाबू गलत बातें न सिखाओ हमारी बिटिया को। दिन में 500 रुपया मांगकर लाती है। खाने को कोई न कोई कुछ दे ही देता है। काम मांगने जाओ तो 100 रूपये की रोजी में दिन भर खटकर भी गालियां मिलती हैं और रोटी के नाम पर वही बासी खाना जो हमें सड़कों पर भी मिल जाता है।
               फिर क्यों हम अपने बच्चों को पढ़ाकर लोगों की चाकरी करवाएं। कुछ साल बाद अच्छा सा घर बना लेंगे अपने गांव में और वही रहेंगे। अभी तो शहर की भीख शहर के काम से ज्यादा पैसे दिलाती है। हमें नहीं चाहिए सरकारी स्कूल की पढाई और खाना। ये कहकर लगभग घसीटती हुई वो औरत अपनी बच्ची को लेकर भीड़ में गुम हो गई। सालों बाद भी उस मासूम की आंखों की कातरता नहीं भूल पाया था मुकेश। 
           समय बीतता गया। 20 साल बाद एक गांव के सरकारी अस्पताल में उसकी पोस्टिंग हुई। आज उसे वहां ज्वाइन करना था। जल्दी से तैयार होकर वो अस्पताल पंहुचा। गाड़ी से उतरकर अस्पताल में कदम रखा ही था कि एक 25-26 साल की लड़की ने आकर उसके पांव छू लिए। सकपका सा गया वो और पूछा तुम कौन हो?
               लड़की ने बताया सर उस रोज आपकी बातें मेरे मन में घर कर गई। एक दिन भीख के सारे पैसे चोरी हो गए कहकर मैंने उसकी किताबें ले ली। मास्टर जी के पैर पकड़े और फिर रोज भीख मांगने के बीच चुपके चुपके स्कूल भी जाने लगी। दसवीं तक मां को पता नहीं चला क्योंकि मैंने माँ से कहकर रेलवे स्टेशन के पास का एरिया भीख मांगने के लिए चुना और मां को कहा कि वो बस स्टैंड की तरफ जाए।रेल्वे स्टेशन के पास ही मेरा स्कूल था। 
बात तब बिगड़ी जब दसवीं में मैंने पूरे जिले में मैरिट में पहला स्थान पाया और खबर अखबारों और लोकल टीवी चैनल पर आई। लोगों ने देखकर मां को बता दिया। बहुत पिटाई हुई। अधमरी सी हो गई थी मैं। तब किसी ने मास्टर जी को बताया। इतने सालों से एक पिता की तरह मेरा सहयोग किया था उन्होंने इसलिए मेरा दर्द देख नहीं पाए। एक गरीब बस्ती में माँ के सामने हाथ जोड़कर मेरी पढाई की जिम्मेदारी भीख में मांगी उन्होंने। 
             बस फिर क्या था स्कोलरशिप और मास्टरजी की मदद से पी एम टी का एग्जाम पास किया और डॉक्टर बन गई। अब माँ लोगों के घर खाना बनाती है। छोटा भाई और बहन भी 10 वी  और 8 वी में पढ़ते हैं।  एमबीबीएस के बाद आज ही इस अस्पताल में सरकारी नौकरी लगी है। मास्टर जी का पिछले महीने देहांत हो गया। मैं आज जो भी हूँ सब आपकी प्रेरणा से हूं, मेरा सौभाग्य की आप मेरे सामने हैं, मास्टर जी को खोने के बाद विचलित सी थी पर आपको देखकर दुख सहने की हिम्मत मिली। उसने फिर से मुकेश को प्रणाम किया और अपने कक्ष की और चली गई।
                  आज वो यही सोचता खड़ा रह गया कि उस दिन भीख दे दी होती इस ग्लानि से अचानक मुक्त हो गया वह। आज सचमुच आत्मा कह रही थी अच्छा हुआ उसे भीख नहीं सीख दी।एक जीवन संवारने की इच्छा से उस बच्ची से की गई बात से केवल उस बच्चे और उसका परिवार नहीं सुधरा बल्कि उसने जीवन में पहली बार इतना सुकून महसूस किया।
        क्या ये अप्रत्याशित घटना कभी कभी खुद को दोहराती होगी आज उसके मन में यही सवाल कुलबुला रहा है। जबकि वो जनता है ऐसे सवाल निरुत्तर ही रह जाते हैं?
प्रीति सुराना

 

0 comments:
Post a Comment