यौवन की दहलीज पर,यूं रखते ही पांव।
मन जोगन सा ढूंढता,आज पिया का गांव।
ढूंढ ढूंढ जब थक गई, मिली पेड़ की छांव।
राह बताते लोग सब,दूर पिया का गांव।।
बीहड़ राहों पर चली,कंटक चुभ गए पांव।
नित नित मैं सोचूं यही, किसे कहूं मैं भाव।।
पोर पोर दुखने लगे, हावी होता ताव।
आखिर जाकर मिल गया, मुझे पिया का गांव।।
पिया मिलन की आस थी,जीत गई मैं दांव।
नैन बाण नैनन लगा, पड़ा कलेजे घाव।।
प्रीति सुराना
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