मन भीग रहा मेरा
सोचूं मैं साजन
कब साथ मिले तेरा।
मौसम कितने बीते
सूनी थी रातें
तुम बिन दिन थे रीते।
तू भूल गया कैसे
बातें सावन की
थी सपना ही जैसे।
तुम ही जीवन मेरे
याद सदा रखना
बिन फेरे हम तेरे।
चाहत सुन ले मेरी
मिलने को तरसूं
मैं राह तकूं तेरी।
खत लिख कर बतलाओ
लब जो कह न सके
सच में कर दिखलाओ।
ये कैसी मजबूरी
भीगा है सावन
है प्रीतम से दूरी।
भूलूं कैसे पीहर
तेरे साथ चली
छूटा बाबुल का घर।
प्रीति सुराना
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