Saturday 26 November 2016

भाषा का अंतर

मैंने कहा प्रेम
उसने झट से स्वीकार किया,
मैंने कहा प्यार
उसने यह भी समझ लिया,
मैंने कहा मोहब्बत
उसने ये भी मान लिया,
मैंने कहा love
उसने इसे भी accept किया,

और फिर
तय हुई
हमारी पहली
*मुलाकात*
हम मिले
मैंने कुछ नहीं कहा,

मैंने लिया
अपने हाथों में उसका हाथ
और रख दिया उसके कंधे सिर
उसने हौले से
मेरे माथे को सहलाया
फिर चूम ली मेरी हथेली,

सारा अनकहा
सुना सा लगा
तब मैंने जाना
और माना भी
भावना/ एहसास/ जज़्बात/ फीलिंग्स
सब एक थे,

भाषा का अंतर
भावों को नहीं बदल पाया
बस शर्त एक थी
रूह से महसूस करना
और
आत्मा से स्वीकारना,

हमनें
महसूसा और स्वीकारा
इस तरह हुई
सार्थक
या
कहूं मुकम्मल *मुलाकात*

प्रीति सुराना

1 comment:

  1. सुन्दर शब्द रचना
    http://savanxxx.blogspot.in

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