Sunday 30 October 2016

दोषी कौन??

दोषी कौन???    
          घर के सारे काम निपटा कर अनामिका कुछ देर लेटने का सोचकर पलंग की ओर बढ़ी ही थी कि उसे याद आया उसने रौनक से वादा किया था फ्री होकर ऑनलाइन बात करेंगे।
जैसे ही मोबाइल चालू किया रौनक उसे ऑनलाइन दिखा। उसने हेलो लिखा और जवाब का इंतजार करने लगी। पर तब तक रौनक ऑफलाइन हो चुका था। अनामिका ने रूठते हुए लिखा मुझे देखते ही ऑफलाइन क्यूं तुम्ही ने तो कहा था ऑनलाइन बात करते हैं। पर रौनक ने कोई जवाब नहीं दिया। अनमनी सी अनामिका आंखे बंद करे लेटी रही पर उसका मन नहीं लगा। कुछ देर बाद मोबाइल फिर चेक किया उसमे रौनक जा मैसेज था जिसे पढ़कर उसका चेहरा सफ़ेद और शरीर बेजान सा हो गया।
          मैसेज में लिखा था 'तुम्हे शर्म नहीं आती इस तरह के मैसेज करते हुए ? तुम्हारे पति हैं, बच्चे हैं, परिवार है, मैं गलत शब्दों का इस्तेमाल नहीं करती पर तुम भी जानती हो ऐसी औरत को क्या कहते हैं ? आज के बाद कॉल या मैसेज किया तो अगली बात तुम्हारे पति से होगी।
अगला मैसेज था 'ये मैसेज मैंने किया है- शुभ्रा माथुर।'
            महीनों से सोशल साइट पर मीलों दूर एक ऐसा साथी, दोस्त या दोस्त से भी बढ़कर एक रिश्ता जिससे सुख-दुख, इच्छा-अनिच्छा, अपने जीवन का हर पहलू साझा करते करते दोनों को अब महसूस ही नहीं हुआ कभी कि ये आभासी दुनिया का आभासी रिश्ता है।
एक सदमे से कम नहीं था ये अनामिका के लिए। उसने झट से रौनक का नम्बर ब्लॉक किया । पर इस मन का क्या जो चीख चीख कर सिर्फ एक सवाल शुभ्रा से पूछना चाहता था कि और ऐसे पुरुषों को क्या कहते हैं ?? पर एक सच्चा साथी खोकर उसकी दुनिया जो कि पहले से ही बिखरी हुई थी उजाड़ना नहीं चाहती थी।
             मोबाइल हाथ में लिए बिलख बिलख कर रोती हुई अनामिका को अचानक समय का एहसास हुआ कि बच्चों का स्कूल से और आदित्य के ऑफिस से लौटने का समय होने को आया । मन की अथाह वेदना और इस वक़्त रौनक की फ़िक्र को हलके मेकअप से छुपाकर अपनी अस्तव्यस्त हालत को बनावटी लिबास में छुपाती हुई वास्तविक दुनिया के दायित्व निभाने को उठ खड़ी हुई अनामिका डोरबेल सुनकर दरवाज़ा खोलने गई। दरवाज़ा खुलते ही किचन की तरफ मुड़ी की आदित्य को पानी दे दूं और वहीं चक्कर खाकर गिर पड़ी।
                 सुना है उसे नर्वस ब्रेक डाउन हुआ है और वो हॉस्पिटल में है। बेसुध मौन बेखबर छत पर टकटकी लगाए न किसी को पहचानती है न कोई प्रतिक्रिया देती है।
             जब से हॉस्पिटल से लौटी हूं यही सोच रही हूं कि 'आभासी रिश्तों का सुख' या 'सच्चे रिश्तों का दुख'  'पुरुष' या 'केवल स्त्री' आखिर इनमें से दोषी कौन????

प्रीति सुराना

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