मन के हारे हार है
मन के जीते जीत,...
तू ही है मेरे मन में
तू ही मन का मीत,...
सुर लय ताल नहीं जानू
है भाव भरी बातें मन में,
सोचूं भी मैं तुझको तो
उठती है तरंगों सी तन में,
लिख सकती हूं धुन बिना
मीठा सा प्रेम का गीत,...
तू ही है मेरे मन में
तू ही मन का मीत,...
मन के हारे हार है
मन के जीते जीत,...
माना आया है जीवन में
संघर्षों का ये कालचक्र,
खुशियां ने भी डाल रखी
हम पर अपनी दृष्टि वक्र,
हाथ में तेरा हाथ रहे तो
दुख में भी हो खुशी प्रतीत,...
तू ही है मेरे मन में
तू ही मन का मीत,...
मन के हारे हार है
मन के जीते जीत,....
साथ जो तू चलेगा तो
मंजिल मिल ही जाएगी,
हर मुश्किल से लड़ लूंगी
बीच में जो भी आएगी,
जिद नहीं ये प्रीत है मेरी
समझ प्रेम की रीत,..
तू ही है मेरे मन में
तू ही मन का मीत,..
मन के हारे हार है
मन के जीते जीत,...प्रीति सुराना
0 comments:
Post a Comment