Sunday 31 July 2016

दरारें

सुनो!

मुझपर तुम्हारा
जरा सा अविश्वास
हमारे दरमियान बना गया
एक गहरी दरार
जो दिखने में बहुत ही संकरी सी है
पर जानते हो वो दरार
दिमाग से दिल तक गहरी है,..

अब मैं चाहूं तो भी
पाट नहीं सकती उसे
प्रेम के मजबूत घोल भी डाला
तो वो पंहुचा
सिर्फ ऊपरी सतह तक
दिमाग ने दिल तक पहुचने के
सारे रास्ते बंद कर रखे थे,...

बहुत मिन्नतें की मैंने दिमाग से
मान जाओ
और जाने दो प्रेम को
ताकि रिस कर दरारों से होकर
दिल की जमीन तक
पहुंच कर भर दे 
महीन किंतु गहरी उस दरार को,...

पर जानते हो
दिमाग ने क्या जवाब दिया?
उसने कहा
विश्वास या तो होता है या बिलकुल नहीं होता
टूटे हुए दरार वाले रिश्तों में
कितना भी प्रेम डालो बह ही जाता है
फिर कभी जमता नहीं,...

जानते हो ऐसा क्यूं?
क्योंकि प्रेम
सरल है
तरल है
सदैव प्रवाहित होना उसकी प्रकृति है
रुकना प्रेम को नहीं आता
वो तो चलता ही रहता है अनवरत,..

विश्वास तो मजबूत होता है
पर कठोर भी
जब टूटता है
तो फिर जुड़ने का गुणधर्म नहीं उसका
गंठबंधन में बांध भी दिया
तो भी
गांठ तो रह ही जाएगी ना,....!,....प्रीति सुराना

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