Tuesday 14 June 2016

कैसे मिलने आऊं मैं?

तू रहती है प्रेम नगर में कैसे मिलने आऊं मैं?
बहुत कठिन ये प्रेम डगर है कैसे अब समझाऊं मैं?

जैसे तैसे ढूंढ लिया है घर का तो गुमनाम पता,
अपने मन को घर कह डाला कैसे घर में आऊं मैं?

हठ तेरा आना ही होगा कैसे पूरी चाह करूं,
तेरे घर के द्वार बहुत हैं किससे हो कर आऊँ मैं?

आंखो की राह चुनी थी पर सपनों ने पग रोक लिया,
कोई सपना कैसे तोडूं कैसे मन तक आऊं मैं?

तेरे तन पर सजते गहने तन की राह नहीं भाती,
मैं निर्धन मुझे मोह नहीं कुछ कैसे ये समझाऊं मैं?

द्वार ह्रदय का देखा मैंने अरमानों का मेला है,
सब द्वारों पर भीड लगी है कैसे भीतर आऊँ मैं?

तू रहती है प्रेम नगर में कैसे मिलने आऊं मैं? .....प्रीति सुराना

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