मैं करती अभिनन्दन अतिथि का,
पर ज्ञान नहीं मुझको विधि का,..।
राह पर यदि सुमन रखती हूं,
कांटे चुभने से डरती हूं।
कांटा न रहे व सुन्दर भी हो,
सुमन वही जो सुरभित भी हो।
ढूंढूं खोल पिटारा सुधि का,
मैं करती अभिनन्दन अतिथि का।
पर ज्ञान नहीं मुझको विधि का,..
कुमकुम का मैं तिलक लगाती,
अक्षत चन्दन माला भी लाती।
वीणा का करवाती वादन ,
करती अंतर्मन से अभिवादन।
थाल अर्पित भावों की निधि का,
मैं करती अभिनन्दन अतिथि का।
पर ज्ञान नहीं मुझको विधि का,.. प्रीति सुराना
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