Saturday, 21 May 2016

ठहरी सी कुछ याद मिले,...

यूं हम बरसों बाद मिले
जैसे  भूली  याद  मिले

गुलशन जो वादों का था
लौटे तो बरबाद मिले

बचपन छूटा गलियों में
खुद से बरसों बाद मिले

खुशियां अपनी बांटी थी
वो घर भी नाशाद मिले

कतरे आंसू के छलके
चमन वही आबाद मिले

महफ़िल में इक गजल पढ़ी
शायद तेरी दाद मिले

प्रीत खिली है आस नई
ठहरी सी कुछ याद मिले,... प्रीति सुराना

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