ईंट ईंट जुड़कर
साथ जब भी हो खड़ी,
न्याय नीति पर बनी
नेक सी दीवार हो।
ख़ुशी का हो एक द्वार
और छत विश्वास की
भवन ऐसा हो खड़ा
नींव दमदार हो।
सुख दुःख सह सके
साथ मिल बैठकर,
वहां पर एक ऐसा
कक्ष भी तैयार हो।
बस प्रेम ही प्रेम हो
और बाकी कुछ नहीं,
जो बने घर अगर
नेह ही आधार हो।
प्रीति सुराना
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