Tuesday 5 April 2016

आ रही है,...

कही से मटकती हुई आ रही है
वो देखो चहकती ख़ुशी आ रही है ।

न जाने कहाँ से उम्मीदें लिए वो
हसीना अकेली चली आ रही है।

मिलेगी कभी तो पिया से गले वो
इसी चाह में लो बही आ रही है।

नजर में वो चाहत की दुनिया सजाये
निराशा मिटा के बढ़ी आ रही है।

है मंजिल जरा दूर आँखों में तब ही
छलकती जरा सी नमी आ रही है।

मगर वो खुशी से लगी है बहकने
मिलन की लगे ज्यों घडी आ रही है,... प्रीति सुराना

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