दहेज़ या गर्भपात,कुरीतियां समाज की,
हर एक विषय पे,भावों को बहाती रहूं ।
प्रदूषण,राजनीति,भ्रष्टाचार,दुराचार,
मुद्दा चाहे कोई भी हो,सोच मैं जताती रहूं ।
सुरों का भी ज्ञान नहीं,गीत नहीं गाया जाए,
तरन्नुम में न सही,तहत सुनाती रहूं ।
प्रसव के पीर जैसी,सृजन भी पीर सहे,
हृदय की कलम से , व्यथा मैं बताती रहूं ।
प्रीति सुराना
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