अपने खेतों को सींचा था उसने खून पसीने से,
धरती मां को रोज लगाया उसने अपने सीने से,
सूखा सूखा मौसम आया प्यासी थी धरती मां भी,
भूखा कुनबा लेकर मरना सरल लगा यूं जीने से।।
प्रीति सुराना
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अपने खेतों को सींचा था उसने खून पसीने से,
धरती मां को रोज लगाया उसने अपने सीने से,
सूखा सूखा मौसम आया प्यासी थी धरती मां भी,
भूखा कुनबा लेकर मरना सरल लगा यूं जीने से।।
प्रीति सुराना
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