जैन कुल में जन्म मिला और सुसंस्कृत परिवार,
पुण्य बहुत किया था संचित वही बना आधार,
सुख दुख भोगे पर छोड़ा न कभी जिन शरणा,
धन्य वो मातपिता जिन्होने दिए उत्तम संस्कार।
बनकर घर की बड़ी बहु बनी हमेशा जिम्मेदार,
बुजुर्गों की सेवा की और संभाला अपना परिवार,
पत्नीधर्म भी खूब निभाया बच्चों की आदर्श बनी,
आज धर्म के आश्रय में कर रही है जीवन उद्धार।
समय समय पर कितने ही तप करती रही हर बार,
कितने तीरथ कर डाले पर न थकीं ना मानी हार,
एक आस धरी थी मन में वो भी कर ली पूरी आज,
108 पार्श्वनाथ के दर्शन का सपना किया साकार।
आज बड़ा ही गौरान्वित है पूरा संचेती परिवार,
विनम्र ह्रदय से कर रहा तीर्थदर्शी का सत्कार,
पुण्यात्मा हैं आप 'सुशीला' जी जो मिला ऐसा सद्भाग्य,
सकल श्री संघ का प्रीति पूर्ण अभिनन्दन करें स्वीकार।,.. प्रीति सुराना
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