Tuesday, 1 March 2016

चौथा सोशल मीडिया मैत्री सम्मलेन बीकानेर 5-6मार्च 2016

सच मुझे नहीं पता इस मैत्री सम्मलेन में आमन्त्रित प्रविष्टियों वाला मेल मुझे किसने भेजा,... 3-4 बार मैंने इग्नोर भी किया पर दिल्ली पुस्तक मेल से लौटने के बाद जाने क्या सूझी 20 जनवरी प्रविष्टियाँ भेजने की अंतिम तिथि थी,..उस दिन शायद आखरी बुलावा था और मैंने भी जाने क्या सोचकर प्रविष्टियां भेज दी,... उसी शाम स्वीकृति भी आ गई। 22 जनवरी मेरे जन्मदिन की शाम घर पर मेहमान थे और Kishor Srivastava जी का कॉल आया कि 10 मिनट में सम्मलेन के परिचर्चा के विषय में अपने विचार भेजें मैंने हाँ कहा पर मेहमानों के बीच भूल गई,...फिर व्हाटसप पर उनका एक गुस्से वाला मैसेज आया की कैसी साहित्यकार हैं आप चन्द लाइन्स लिख कर नहीं भेज सकीं,.. मैंने वजह बताते हुए क्षमा सहित विचार भेजे जो आयोजक मंडल में स्वीकृत हुए।
         मैं पूरे 100 लोगो में से बादल के अलावा किसी से भी न कभी मिली हूं,.. कुछ मतभेदों के चलते उससे साल भर कोई बात भी नहीं हुई और न ही फेसबुक या व्हाटसप के जरिये मैंने कभी किसी से बात की क्योंकि आदतन मैं चैट इग्नोर करती हूं,.. जबकि अधिकतर सभी लोग मेरी मित्रसूची में हैं,..और जो नहीं थे वो भी पिछले एक महीने मे जुड़ते चले गए,.... पर आज भी व्यक्तिगत बातचीत किसी से भी नहीं है,... फिर भी सबसे मिलने का उत्साह चरम पर है,... थोड़ा डर था कि सभी अजनबी है पर ये सोचकर वो डर पीछे छोड़ दिया कि जब सभी सोशल मीडिया मैत्री सम्मलेन में आ रहे हैं तो मित्रता का भाव स्वतः ही सुरक्षा कवच सा महसूस हो रहा।
       फिर थोडा संकोच ये भी था कि प्रतिभा प्रदर्शन भी करना है,... अभी कुछ दिन पहले एक स्टेटस पढ़ा था कि "फेसबुकिया रचनाकार किसी कार्यक्रम में जाने से ये सोचकर घबराते होंगे की फेसबुक पर हांकने और मंच पर आने में फर्क है,... भीड़ का सामना कैसे करेंगे" ,.. सोचा चलो इस बात को झुठलाया जाए क्योंकि मैं मानती हूँ कि यदि प्रतिभा है तो सिर्फ मौके की मोहताज़ है फिर डर किस बात का,...
        फिलहाल अपनी अस्वस्थता को दरकिनार कर मैं पूरी तरह तैयार हूं इस सम्मलेन में शामिल होने को और बहुत उत्साहित हूं आभासी दुनिया के वास्तविक अहसास को महसूस करने के लिए। उम्मीद है आप सभी की दुआएं ये सफ़र सुखद और सफल बनाने में सहभागी बनेगी,... स्नेहकांक्षी,... प्रीति सुराना

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