Tuesday, 23 February 2016

'पसंद' (लघुकथा)


              अभी तीन महीने ही हुए थे प्रेम और जान्हवी की शादी को। लव मैरिज की थी दोनों ने,. नई नई गृहस्थी थी घर के कुछ जरुरी सामान लेने थे जिसे उसके मूड की वजह से टाल नहीं सकती थी इसलिए सुपर मार्केट जाकर शॉपिंग की और चुपचाप आकर कर सामान पीछे की शीट पर रखा और प्रेम के बगल वाली शीट पर बैठ गई। पूरे रास्ते प्रेम ने कुछ नहीं कहा।
            तभी जान्हवी ने उसका मूड ठीक करने के इरादे से कहा,.. चलो ना लांगड्राइव चलकर तुम्हारे फेवरेट रेस्टोरेंट में तुम्हारी पसंदीदा ब्लैक कॉफी पीते हैं। प्रेम ने कहा मुझे कहीं नहीं जाना,..मुझे ये सब पसंद नहीं । जान्हवी ने कहा कुछ दिन पहले तक तो तुम्हे ये सब बहुत पसंद था। अब क्या हुआ? प्रेम ने कहा लंबे समय तक एक ही चीज पसंद करने की आदत नहीं,..मुझे हमेशा कुछ नया ही पसंद आता है,..।
           स्तब्ध अवसादग्रस्त जान्हवी अब प्रेम से उसके रूखेपन का कारण नहीं पूछती। हमेशा चहकने वाली जान्हवी की आंखों में अब इंतजार और सपनों की जगह काले घेरों ने ले ली,. अपने आप में खोई गुमसुम यंत्रवत अपने सारे काम करती दिन रात यही सोचती है कि प्रेम मेरी पसंद है जो कभी नहीं बदलेगी,. क्या ये मेरी गलती है ??,. प्रीति सुराना

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