'मानवता से बड़ा कोई धर्म नहीं'
जो
जन्मा
तत्काल
फूंके मन्त्र
तभी कान में
उसे बता दिया
धर्म परिवार का ।
न
धर्म
सिखाता
जातिभेद
ना ही मनुज
ये जाल रचते
सत्ता के लोभी सारे।
है
धर्म
ममता
मानवता
पर मानव
हुआ गुमशुदा
सामजिक भीड़ में।
जो
सोच
बदले
इंसान की
इंसानियत
प्रथम धर्म हो
केवल सत्कर्म हो।
हो
स्वयं
निर्णीत
नही होंगे
सांप्रदायिक
इरादे नेक हैं
हम सब एक हैं।
न
होगी
अब से
जातपात
ऊंचनीच की
चर्चाएं पाखंडी
मानवता ही धर्म। ,..प्रीति सुराना
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