Saturday, 20 February 2016

इश्क का दरिया

माना
मुझे आता था
तैरना
और
लहरों का रुख भी
समझती थी मैं,..

पर ये
इश्क का दरिया
होता ही कुछ ऐसा है
कि भंवर का अंदाजा हो भी,
तो भी दिल डूबने को ही
बेताब होता है,...

और
जिसे चाहो
वही बेवज़ह
इलज़ाम देता हैं,
कि लहरों को समझते थे
तो डुबाया क्यूं???

ये कमबख़्त इश्क
अकसर
ठहरे हुए समंदर में भी
डूबने को
उन्हें मजबूर करता है
जिन्हें तूफानों का अंदाज़ा पहले से था,...

है ना!!!! ,...प्रीति सुराना

0 comments:

Post a Comment