Thursday, 28 January 2016

परखना मत,....!

सुनो!!
कसौटी पर
कसे जाने पर
घर्षण की पीड़ा,
सिर्फ खरा सोना ही सह सकता है,..

पीतल को स्वर्ण समझकर
कसौटी पर घिसने का परिणाम
पीतल को और कमजोर करता है ,..
और घिसी गई जगह से
पीतल का पात्र या आभूषण जल्दी टूटता है,...

साज सज्जा,
नई -नई रंगत
और बनावट वाले चलन के युग में
समझना मुश्किल है
कमजोर कड़ी कौन सी हो,..

मैंने
कई बार समझाया है तुम्हे
हर रिश्ते को
अपने ही मापदंडों की कसौटी पर
कसना छोड़ दो,..

हर रिश्ते का
अपना मापदंड और नजरिया होता है,..
सही रिश्ते की परख की खातिर
यूं रिश्तों को कमजोर करते गए
तो अंत में नितांत अकेलापन ही हाथ आएगा,.

क्योंकि
जो बनावटी या मिलावटी है
वो रिश्ते कमजोर होंगे,..
पर जो खरे हैं,
वो रिश्ते कसे जाने पर मन से टूट जाएंगे ,..

हां!!
ये कहावत यूं ही नहीं बनी,..
"परखना मत,
परखने से,..
कोई अपना नहीं रहता" ,..प्रीति सुराना

3 comments:

  1. आपकी रचना पढ़कर वशीर बद्र जी का गजल गुनगुनाने का मन करता है ....
    परखना मत, परखने में कोई अपना नहीं रहता
    किसी भी आईने में देर तक चेहरा नहीं रहता
    बडे लोगों से मिलने में हमेशा फ़ासला रखना
    जहां दरिया समन्दर में मिले, दरिया नहीं रहता

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  2. आभार आपका,..यही ग़ज़ल मुझे भी याद आई ,.. 😊

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  3. संबंधों को गणित से तौलना कठिन है, समय और धैर्य से परखे जाते हैं ये।

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