Saturday 4 July 2015

आत्मविश्वास क्यूं जरुरी है,...?

सहारे मत ढूंढो,..
सहारे छूट जाते हैं,..
हौसला रखो,..
हौसले ही काम आते हैं,...

एक बहुत कड़वा सच ये है कि हमें अपने दर्द खुद सहने होते हैं,...कोई नहीं होता जो आपका दर्द कम कर दे,..दर्द निवारक दवा बनकर,..।
हिम्मत से काम लो,..सब ठीक हो जाएगा,...ये शब्द जब सहानुभूति से भरे होते हैं ना,... तब बहुत तकलीफ देते हैं,..चुभते हैं,...और कई बार इन शब्दों की हमें जरुरत होती है,..दिल से हम चाहते हैं कि कोई आकर कहे हौसला रखो,...मैं हूं तुम्हारे साथ,...।
क्योंकि प्रेम और विश्वास जीवन की दर्द निवारक दवा न सही पर दर्द से उपजी निराशा और तनाव को कम करने और आत्मविश्वास बढ़ाने की दवा का काम जरूर करते हैं,..।
आत्मविश्वास क्यूं जरुरी है,..?
हमारे पास है न सहारा,..जन्म लेते ही माता पिता का,..स्कूल में जाते ही दोस्तों और शिक्षकों का,.. टीन ऐज में आते ही गर्ल/बॉय फ्रेंड का,...शादी होते ही पति/पत्नी का,..बच्चे होते ही बच्चों का,..और जब बच्चे बड़े होकर इसी चक्र में फंसकर आप ही की तरह अपने जीवनचक्र में फंस जाएंगे तब,.. ???तब हम खुद को कोसेंगे कि हमने औलाद को पालकर बड़ा क्यों किया इसलिए कि ये दिन देखना पड़े,...आदि इत्यादि,..।
क्या कोई भी अपना चाहे वो माता -पिता हों,दोस्त हों,प्रेमी -प्रेमिका हो,भाई -बहन हो,पति -पत्नी हो,या हमारे खुद के बच्चे हों,... या सोशल मिडिया के फ्रेंड्स हों,...जब हमें किसी भी विपरीत परिस्थिति से जूझना हो तो काम आते हैं,...???दरअसल काम सिर्फ और सिर्फ अपना ही आत्मविश्वास आता है,..और कोई नहीं,...।
माना की माध्यम बनते हैं रिश्ते -नाते,..दोस्त,..अपने,..और समाज,..पर उन माध्यमों का सदुपयोग करने का हुनर खुद हममें होना जरुरी है,.. कुछ लोग होते हैं जो माध्यमों को सीढ़ी की तरह उपयोग करते हैं बिलकुल स्वार्थी बनकर,...कुछ लोग माध्यमों का उपयोग करते हैं बैसाखियों की तरह अपाहिज़ बनकर,... ।
जो स्वार्थी होते हैं दरअसल वो भीतर से सबसे ज्यादा खोखले होते हैं,..उनमे आत्मविश्वास होता ही नहीं,..उनमें कभी कोई भी काम अपने दम पर कर सकने का हौसला ही नहीं होता,..वो हमेशा दूसरों के सहारे ही आगे बढ़ते हैं,..एक आधारहीन जीवन और एक आधारहीन सफलता जिसे ढहने में दो पल नहीं लगते,..।
जो अपाहिज़ श्रेणी के होते हैं वो दरअसल किसी न किसी कारण विशेष के चलते आत्मविश्वास खो चुके होते हैं,...वो जरा सा सहारा मिलते ही खुद को अमरबेल और सहारे को फलदार वृक्ष समझकर एक अस्तित्वहीन जीवन और विफल जीवन के आदी हो जाते हैं,...।
इन दोनों श्रेणियों के बीच भी एक संकरा सा थोड़ा असुविधा जनक रास्ता होता है,...जिस पर चलना होता है अपने दम पर,..अपने आत्मविश्वास के सहारे,..और आत्मविश्वास को बनाए रखने वाले करक होते हैं अपनों का प्रेम और विश्वास,..क्योंकि ऐसे लोग अपने रिश्तों-नातों की,समाज की परवाह करते हैं,...दिल और दिमाग में संतुलन बनाकर चलते हैं,..अपनों को "सीढ़ी या सहारे" की तरह नहीं बल्कि "साथी और सहयोगी" मानते हैं,..ऐसे लोग जीते है संघर्षमय जीवन और संवेदनशील जीवन,..।
आज की जीवन शैली पर नजर डालें तो साफ दिखता है,.. जिसके पास धन है उसके पास साधन है जिसके पास साधन है वो सफलता के लिए अपने क़दमों तले जाने कितनों के सपनों को रौंदकर आगे बढ़ जाता है,.. जो निर्धन है वो साधनो की जुगाड़ में या तो याचक की तरह व्यवहार करता है या किसी के लिए स्वयं साधन बनकर रह जाता है अथवा किसी पर निर्भर होकर जीवनयापन करता है।
पर मध्यमवर्गीय श्रेणी की स्थिति हमेशा ही दो पाटों के बीच की होती है,..कुछ धन, कुछ साधन, कुछ सपने, कुछ अपने,सबको संभालता सहेजता कभी खुद को सीढ़ी,कभी बैसाखी बनाकर अपने आत्मविश्वास के सहारे जीता है।
स्वार्थी लोगों के अहम् और अपाहिजों की बेबसी के बीच का हिस्सा होता है "आत्मविश्वास",..तो गुजारिश अपनों से और समाज से अपने बीच इस मध्यम मार्ग को जीवित रखने की जिम्मेदारी लें,...
जरा सी आर्थिक स्थिति कमजोर होने पर बेईमानी/अनीति के रास्ते ढूंढने या याचना/कर्ज़ का सहारा लेने की अपेक्षा आत्मविश्वास को बरक़रार रखते हुए मेहनत ज्यादा और खर्च कम करते हुए अपना जीवन स्तर सुधरने की कोशिश करनी चाहिए,..दुनिया में काम बहुत है कमी करने वालों की है,..।"कर्म ही धर्म है" इसे ही अपना मूलमंत्र बनाना होगा।
कभी शारीरिक स्थिति ख़राब हुई तो ,..?? आत्मनिर्भरता ख़त्म ?? बेबसी और दर्द का सहारा लेकर सहानुभूति बटोरकर आगे बढ़ने के रास्ते ढूंढने की बजाय ये सोचिये की क्या हुआ शारीरिक अक्षमता है,..कम से कम जीवन तो है,..?? सड़कों पर कई ऐसे लोग मिल जाएंगे जिन्हें देखकर खुद को जीने का हौसला मिल जाएगा,.. हर अपंग व्यक्ति परजीवियों सी जिंदगी जीये जरुरी तो नहीं है,..जरुरत है अपना सहारा खुद बनने की ये तभी होगा जब आत्मविश्वास बना रहेगा,...।
आज के समय की सबसे बड़ी समस्या है मानसिक अस्वस्थता ,...किसी न किसी रूप में सब के सब किसी न किसी तनाव,परेशानी और निराशा के दौर से गुजर रहे हैं,.. आजकल इंटरनेट के ज़माने में हम जिनके पास होते हैं अकसर उनके साथ नहीं होते,..पाने और खोने का दौर चलता ही रहता है,.... और ऐसे में कुछ लोग दूसरों फायदा उठाकर इन सबसे आगे निकल जाते हैं,...कुछ अपराध और आत्महत्या तक के कदम उठाते हैं,..ऐसे में फिर स्वार्थी और मानसिक अपंगता के बीच पिसता है मध्यमवर्ग जिसे सहना होता है स्वार्थ के चलते मानसिक तनाव और मानसिक अपंगता से जनित अपराधों और तकलीफों को,...इन सब से जूझने का एक ही उपाय है "आत्मविश्वास कभी न खोना",..!!!
आत्मविश्वास ही एक मात्र चाबी है सफल संतुष्ट और सुन्दर जीवन की,...मत देखिये किसी का रास्ता की कोई आकर कहे कि हौसला रख,..मत देखिये की राह कि कोई आए तो हौसला बढे,...बनिए ऐसा कि लोग आपमें अपना सहारा नहीं बल्कि साथ और सहयोग तलाशें,..जन,मन,धन,तन और अन्न के उपभोक्ता नहीं उत्पादक बनें,...और हां,..जरुरत है हर मुश्किल घड़ी में ये याद रखने की,...
कि
"गुज़र जाएगा ये वक़्त भी
रख ज़रा सा हौसला
खुशियां नहीं ठहरी
तो गम की बिसात क्या है,..????,...प्रीति सुराना

1 comment:

  1. Ati bhavuk prerna, Aabhar Priti Surana ji . Hamesha yaad rakhne yogye ki hamare ander urza aur shakti ka balance bna rehta hai aur yeh recharbe khud hoti rehti he.Apni soch ko sarthak rakho, aur kabhi kamzor feel na kero . Khubsoorat sher aap ka ki har vastu iss sansar me asthayi hai

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