Thursday 2 July 2015

यंत्रवत

माना
साथ चलते चलते
हम एक दूसरे के आदी हो गए हैं,.
हमारे बीच पसरा
मौन भी समझता है
हमारे सुख दुःख,..
हमारे बीच की
नजदीकियां और दूरियां
अब मोहताज नहीं है शब्दों की,..
क्यूंकि
हम महसूस करते हैं सब कुछ,..
और
जीते हैं हर पल एहसासों को
"यंत्रवत",..

चलो न कुछ पल हम मिलते हैं
सिर्फ दर्द के लिए,..

काश उन पलों में
तुम्हारा हर स्पर्श
हो मेरे दर्द को सहलाता हुआ,..
मेरे आंसू पोंछता हुआ,..
तुम्हारा हर चुंबन हो
मेरे हर दर्द की दवा सा,..
तुम्हारे कांधे पर सिर रखूं
तो हर टीस भूल जाऊं,.
तुम्हारे आगोश में आऊं
तो हर दर्द से निज़ात पाऊं,.
तुम्हारे सीने से लगकर जब रोऊं
तो धड़कनों में सुनूं सिर्फ अपना नाम,..

सुनो
अपनी एक ख्वाहिश
लिख रही हूं तुम्हारे नाम ख़त में,..
इस ख़त को रखूंगी मैं
आईने के सामने,..
जानती हूं तुम्हारी आदत
सोकर उठते ही तुम संवारोगे
रोज की तरह अपने बाल,..
तब देख ही लोगे ये ख़त,..

और हां
जवाब में
जब नहाकर निकलो तो पहन लेना
वो कत्थई वाली टी शर्ट,..
नहीं दिखेंगे उसपर
किसीको भी मेरे आंसुओं के निशान,..

जवाब के इंतजार में,...प्रीति सुराना

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