सुनो!!
आज
सचमुच
जी चाह रहा है
ये बारिश थमें ही नहीं,..
जाने क्यूं
मन के भीतर
उमड़ते-घुमड़ते
दर्द संभाले नहीं जा रहे,..
बहुत अरसा हुआ
संभालते हुए
इन दर्द के बादलों को
सबसे छुपाते हुए,...
बेसबब
आज टूट रहा है
सब्र का बांध
जो बांध रखा था मन में,..
काश
संभाल सकूं
बरसते हुए आंसुओं को
और छुपा सकूं इन्हें अपनों से,...
सच
आज बारिश का न रुकना
जरुरी है
मेरे अपनों की खातिर,...प्रीति सुराना
बहुत सुन्दर
ReplyDeleteआपकी इस पोस्ट को शनिवार, २० जून, २०१५ की बुलेटिन - "प्यार, साथ और अपनापन" में स्थान दिया गया है। कृपया बुलेटिन पर पधार कर अपनी टिप्पणी प्रदान करें। सादर....आभार और धन्यवाद। जय हो - मंगलमय हो - हर हर महादेव।
ReplyDeleteफॉण्ट कलर के कारण रचना पढ़ने में कठिनाई हो रही ( अन्यथा ना लें )
ReplyDeleteसुंदर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर सृजन . हर्दिक बधाई
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