Wednesday 10 June 2015

सैलाब और नासूर

मैंने कहीं पढ़ा था,.....
बहुत गहरी नदी,बिना आवाज के बहती है...
और,...
बहुत गहरे दुःख,बिना आँसूओ के होते है ...!

माना
बहुत गहरी नदी 
बिना आवाज़ के ही बहती है
पर 
मैंने अक्सर उसके सैलाबों को 
बेहद उफनते देखा हैं,..
ठीक वैसे ही 
बहुत गहरे ज़ख्म सहकर
किसी के आंसू भले ही सूख जाएं
पर अकसर उन ज़ख्मो को 
नासूर बनते देखा है,..

सुनो
तुम मेरे आंसुओं की तुलना 
कभी नदी से मत करना,..
मुझे सैलाब और नासूर 
दोनों से डर लगता है,..प्रीति सुराना

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