Thursday, 18 June 2015

कांच सी पारदर्शिता

सुनो!!!
तुम कहते हो 
तो मान लिया 
कांच सी पारदर्शिता 
जुबान का मूल गुण होना चाहिए,..
पर 
पारदर्शिता के साथ-साथ
कांच बहुत नाजुक भी होता है 
और 
जरा सी ठेस से टूटता है तो और ज्यादा नुकीला हो जाता है
और जब
बिखरता है तो चुभकर लहूलुहान करने का दम रखता है....
इसलिए मुझे लगता है
जुबान को पारदर्शी बनाओ तो साथ साथ उसकी सार-संभाल का हुनर भी आना चाहिए,..
वरना
रिश्ते टूटे या न टूटे लहूलुहान होने में ज्यादा वक़्त नहीं लगेगा,..
और पता है
टूटे हुए रिश्तों से ज्यादा दर्द होता है 
रीसते और टीसते हुए रिश्तों में,..
इसलिए 
पारदर्शिता के साथ सावधानी और सतर्कता भी जरुरी है,....प्रीति सुराना

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